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MS DHONI : मालिक की दुकान में रखा पुतला

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भारतीय क्रिकेट के कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी की स्थिति 90 के दशक वाली बॉलीवुड फिल्मों के उस कैरेक्टर की तरह हो गई है। जो अपनी आंखों में एक सपना लिए गांव/शहर से मुंबई आता है पैसा कमाने, ग्लैमर और शोहरत हासिल करने। लेकिन सपनों को पूरा करने के चक्कर में ऎसे लोगों की गिरफ्त में आ जाता है कि एक गलती सुधारने की कोशिश में और फंसता जाता है और फिर निकल नहीं पाता। उस पर अपराधी होने का आरोप लगता है और फिर सब कुछ उसके हाथों से फिसल जाता है।  धोनी की हालत ऎसी ही नजर आती है। रांची जैसे छोटे से शहर से निकलकर विश्व क्रिकेट के फलक पर छा जाने वाले धोनी की जिंदगी में भूचाल आ गया है। आर्थिक उदारीकरण के बाद पैदा हुई पीढ़ी के लिए सचिन तेंदुलकर भगवान थे तो धोनी कामयाबी की मिसाल। रांची, लखनऊ, वाराणसी, पटना जैसे शहरों के युवा क्रिकेटरों के लिए धोनी प्रेरणा है। लेकिन ये प्रेरणा अब बेदाग या नहीं? कोई बता नहीं सकता।  2011 में वल्र्ड कप जीतने के बाद भारतीयों की आंख का तारा बने धोनी अब विलेन नजर आने लगे है। पिछले सालों में आईपीएल की मवाद (मैच फिक्सिंग, सट्टेबाजी और ना जाने क्या-क्या) बहने लगी। आईपीएल की कारगु

अमरूद की चटनी - Guava Chutney recipe - Amrood Ki Chutney

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Courtesy_Google एक कमरा था। मन भर उदासियां थी, खामोशियों की शक्ल में। दराज में रखी किताब पर लिखा था। तमन्ना तुम अब कहां हो? जीने की तमन्ना। उसने पूछ ही लिया क्या हमारे पास एक दूसरे के लिए तमन्नाएं नहीं है। क्या हमारे पास बतियाने और कहने को कुछ नहीं है। इतनी देर से हम खामोश क्यों है? ये किताब तुमने पढ़ी है। हां, पढ़ी है। इसमें अमरूद की चटनी पर एक कहानी है। तुमने कभी अमरूद की चटनी खाई है। अमरूद के पास हमेशा एक स्वाद होता है रंग होता है। तुमने कभी कुछ मांगा नहीं। कहा नहीं। बस चलते रहे। मेरे साथ साथ। अचानक से वो उठा और कहा चलो आज तुम्हें अमरूद की चटनी खिलाते है। दोनों किचन में घुसे। आगे पीछे। वह कई तरह की चटनी बनाना था। आम की चटनी। इमली की चटनी। अमरूद की चटनी। धनिया की चटनी। लहसून की चटनी। मिर्च की चटनी। तमाम अचारों की चटनी। जितनी चटनी उसकी बहनों ने उसे बनाई के खिलाई। वो सब बना लेता था। उसके दोस्त कहते, जब खुश होता है तो चटनी बनाता है। उन्हें नहीं मालूम था कि वो चटनी के जरिए प्यार जताता है। कच्चा अमरूद कसैला होता है। पक्का अमरूद मीठा। चटनी कच्चे अमरूद की बनती है। जो तीखी ह

ARVIND KEJRIWAL VS INDIAN MEDIA

इतना नंगा तो मीडिया किसी चुनाव में ना हुआ! समय आ गया है कि सेलेब्रिटी पत्रकार लोग अपनी संपत्ति की घोषणा करें? चैनलों-अखबारों के ट्वीट देखिये, खबर का एंगल देखिए। एक मेटल डिटेक्टर टूट जाता है तो मुंबई में अफरातफरी मच जाती है। ये खबर कौन छापता है। मेटल डिटेक्टर के टूटने से मुंबई में अफरातफरी का बात का कोई कनेक्शन है। बात सिर्फ कवरेज से खत्म नहीं हो जाती है। क्यों चैनलों ने अपनी आंखें बंद कर ली और राजनीतिक पार्टियों के कैमरों से सबकुछ दिखाने लगे। जब केजरीवाल कहते हैं कि पत्रकारों को जेल भेजेंगे, तो बात पूरी मीडिया पर क्यों आ जाती है? क्या मीडिया का मतलब सिर्फ चैनल वाले ही है। उन कॉरपोरेट निहितार्थो का क्या होगा? जिन्होंने Media कंपनी में शेयर है। पत्रकार लोग अपनी संपत्ति की घोषणा क्यों नहीं करते हैं। वे क्यों नहीं बता रहे है कि उन्हें बंगला कहां से मिला, कैसे खरीदा। कहां से खरीदा, अपनी सैलरी क्यों नहीं बताते? चैनल वाले भूल गए है कि व्यक्ति सूचना के जरिए ही अपनी राय बनाता है। चैनल वाले एक तरफा राय क्यों दे रहे हैं। केजरीवाल के बयान पर इतनी हाय तौबा क्यों मचा रहे है मीडिया व