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मां के नाम

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Courtesy_Google Images एक जवान लड़का सबसे ज्यादा अपनी मां को महसूसता है क्योंकि.. मां अब नहीं है उसकी दुनिया में अकेले है वो पूरी भागदौड़ में जब वह भागना सीख रहा था उसकी मां चली गई वह बिछड़ गया अपनी मां से दुनिया के झमेले में वह महसूसता है ढूंढ़ता है मां को अकेलेपन में दुनियादारी के बोझ से फारिग होकर मां के आंचल में छुप जाने को जी भरकर रो लेने को कि वो इतना तन्हा क्यूं है।।

An Open Letter To Whom it May Concern

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Courtesy_Social Media डियर R अब जबकि तुमसे प्रेम करते हुए मैं अकेला पड़ गया हूं। तुम्हें पाने की मेरी बेचैनी और बढ़ गई है। लेकिन मैं नहीं चाहता कि मेरा प्रेम तुम्हारे आड़े आए, किसी भी तरह। फिर भी मैं तुम्हें हमेशा याद करता हूं। रात-दिन, सुबह-दोपहर-शाम और भोर में भी। तुम जानती हो कि भोर मुझे कितना पसंद है, जब मैं तुम्हारी बाहों में समा जाता था और तुम मुझे अपने भीतर डूब जाने देती। दिन के हर पहर तुम्हें सोचता हूं कि तुम्हें फोन कर लूं। शायद, थोड़ी राहत मिल जाए, लेकिन फिर सोचता हूं कि अगर फोन कर लिया तो फिर खुद को संभाल पाना और तुमसे फासला रख पाना मुश्किल हो जाएगा। तुम्हें याद करने की आवृत्ति और बढ़ जाएगी और फोन करने का सिलसिला भी। हालांकि मुझे नहीं पता कि तुम्हें मेरा ख्याल आता भी है या नहीं।  दर्द और कचोट भी है.. तुम्हें बांहों में ना भर पाने की और मुझे इससे पार पाना ही होगा। तुम्हें खुलकर प्यार कर पाना अब शायद ही संभव हो, लेकिन प्यार तो बना ही रहेगा। चाहे हमारे दरम्यान कितना भी फासला बढ़ जाए। ये सिर्फ तुम जानती हो कि मैं तुम्हें घनघोर प्यार करता हूं और मैं जानता हूं कि तुम

मेरा काम चूल्हे में लकड़ियां झोंकना है

मेरा काम चूल्हे में लकड़ियां झोंकना है जब तक दूध खौलता नहीं मेरा काम चूल्हे में लगी आग को धधकाए रखना है धधकती आग की खातिर सूखी लकड़ियां ही जलेगी और आग धधकेगी दूध खौलेगा अपने समय पर क्योंकि दूध.. खून नहीं है कि क्षण भर में खौल उठे खून का खौलना इंसान को जानवर बना देता है मेरे चूल्हे पर चढ़ी हांडी में मिठास पक रही है दूध खौलेगा और उसकी मिठास इंसान को जानवर नहीं बनने देगी। 14.04.2016

प्रेम में बाधक

मैं ऑफिस जा रहा हूँ। मेट्रो की सीढ़ियां चढ़ रहा हूँ। पैरों के दाब से जगता हूँ तो एहसास होता है कि मैं तुमसे हजार किलोमीटर दूर हूँ। लेकिन ये जानने से पहले मैं तुम्हारे साये में था तुम्हारे पहलू में था तुमसे बातें कर रहा था। तुम सामने बैठी थीं हमारी नजरें उलझी थी मैं तुम्हारी लटें सुलझा रहा था फिर मेट्रो की सीढियां आ गई रोजाना चढ़ना और उतरना भावनाओं की डोर से बंधें दो हृदय में कम्पन पैदा करतीं है आलिंगन बद्ध दो जोड़ी बाहें अलग हो जाती हैं तुम्हें बताऊँ ये सीढ़ियों से मेरा रोज का चढ़ना और उतरना हमारे प्रेम में बाधक है। 27.11.2015

अपनी कवितायेँ मिटा दूँ

तुम्हारी ख़ुशी के लिए   मैं अपनी कवितायें मिटा दूँ ताकि कोई जान न सके हमारे दरम्यान क्या था ये तुम्हारा आदेश है लेकिन तुम ये जान लो   कि मैं तुम्हारा आदेश मानने को   बाध्य नहीं हूँ ये कवितायेँ मेरी भावनाएं है क्या मैं उन्हें मिटा दूँ ये कवितायें उस समय पल्लवित हुई जब मैं तन्हा था ये कवितायें आधार है   मेरे सुकून का इन्हें न लिखूं तो बेचैनी मेरी जान ले ले तुम कहती हो, मैं सरसों के फूल पर लिखूं तुम भूल जाती हो कि तुम्हारे बिना सरसों के फूल उजाड़ बियाबां की तरह है तुम हो तो फूल.. फूल हैं मौसम ... हैं हृदय में गति है मस्तिष्क में विचार है विचारों में प्रेम है प्रेम है तो मैं हूँ मैं हूँ तो कवितायें हैं इन्हें मिटाने के लिए तुम मुझे मिटा दो मेरा आग्रह है तुमसे 01.02.2016

मैं तुम्हें भूलना चाहता हूँ

हाँ , मैं तुम्हें भूलना चाहता हूँ तुम्हारी स्मृतियों को झटक देना चाहता हूँ बिना बताये तुम्हें अब तुम्हें मेरी परवाह कहां लेकिन मैं तुम्हें ही याद कर जिन्दा हूँ तुम्हें याद न करूँ तो साँस लेना मुश्किल हो जाये और इन सब बातों का तुम्हे इल्म कहां मैं नहीं जानता मुझे चाहने और अपने प्रेम पाश में बांधने के पीछे   तुम्हारा कौन सा स्वार्थ था लेकिन उस प्रेम की ज्योत का क्या जो तूमने मुझे सिखाया क्या तुमने सिर्फ मेरे सीने में प्रेम जगाया था और खुद को दुनियादारी के परदे में छुपा लिया जैसे तुम्हे प्रेम की जरुरत ही न हो देखो मेरे अंदर अब बहुत कुछ धधक रहा है जो लावा बनकर फूटने को है मैं तुम्हारे प्रेम के बिना मर रहा हूँ तुम्हारी बातों के सिवा संगीत कहीं नहीं है तुम्हारा पल्लू ही शीतलता दे सकता है मुझे तुम्हारे नरम स्पर्श ही जगा सकते है मुझे ये सब तुम्हे पता है और मुझे महसूस हो रहा है कि तुम्हारे अंदर मेरे लिए प्रेम बचा ही नहीं है मैं उजाड़ रेगिस्तान में शीतल जल ढूंढ़ रहा हूँ मैं प्यासा   तन्हा   व्याकुल हूँ थक चूका हूँ तुम्हारे प्रेम को पाने क

तुम रात भर जागते क्यों रहे..?

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वो पल अप्रतिम थे रात के घने कोहरे में जब तुमने मुझे कलेजे से चिपटाया था इसी पल हृदय में जमी बर्फ पिघली और मैंने तुम्हारे हाथों को चूम लिया एक बार दो बार पूरे तीन बार ..….. तुमने मुझे दाब लिया कलेजे में वो सबसे ज्यादा गर्माहट भरे पल थे मेरे जीवन का लेकिन... मेरी प्यास अधूरी थी आँखों से नींद गायब थी हृदय प्यासा था तुम्हारे सीने से लगने को ..... मैं तरसता रह गया प्यासा खुली आँखों से अँधेरे में चिराग ढूंढ़ता रहा करवट बदलता रहा ......... हजारों घड़ियाँ बीतने के बाद तुम्हारा चेहरा मेरे सामने था और मैं अविकल तुम्हारे माथे को चूम बैठा फिर दोनों पलकों पर अपने होंठ रख दिए एक प्यासे के लिए प्रिय के प्रति प्यार जताने का ये अनमोल जरिया है किसी ने कहा है माथे को चूमना आत्मा को चूमने जैसा है तुम्हारे माथे को चूमकर मैंने अपने रिश्ते को आत्मा से जोड़ दिया है और उसी क्षण जब तुमने कहा... पागल... मैं भावविभोर हो बैठा आधी रात को न अच्छा लगा , बुरा न लगा फिर भी गर्माहट से भरा सुख मिला और मैं पूरी रात जागता

मेरे सीने में लगी आग तुम्हारे सीने में भी धधके

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Fire in Heart_Google दिन भर तुम्हारे बारे में सोचता हूँ।   आधी आधी रात तक जागता हूँ।   जब तुम थी तब भी और जब नहीं हो तब भी जब थी , तो तुम्हारे सीने से लगने के लिए जागता था और जब नहीं हो तब   तुम्हारे बदन की गंध को महसूस कर जागता हूँ कभी रजाई में ढूँढ़ता हूँ कभी उस तकिये में , जिस पर तुम सिर रखके सोई थी तुम्हे बताऊं   मेरे सीने में एक आग लगी है। जब आखिरी बार तुमने कलेजे से लगाया था। तभी से चाहता हूँ आठों पहर तुम्हें सीने से लगाए रहूँ।   प्यार करूँ और तुम्हारी पलकों को चूम लूँ। तुम्हारे हाथों के नर्म स्पर्श में पिघल जाऊँ और अपनी द्रव्यता से तुम्हें भिगो दूँ तुम्हारी अतल गहराइयों में उतर जाऊं हमेशा के लिए   द्रव्य बनकर ताकि मेरे सीने में लगी आग तुम्हारे सीने में भी धधके आहिस्ता आहिस्ता ज़माने की बुरी नजरों से बचके

"एक हथौड़े वाला घर में और हुआ "

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केदारनाथ अग्रवाल की कविता एक हथौड़े वाला घर में और हुआ! हाथी-सा बलवान, जहाजी हाथों वाला और हुआ! सूरज-सा इंसान तरेरी आँखों वाला और हुआ! एक हथौड़े वाला घर में और हुआ! माता रही विचार, अंधेरा हरने वाला और हुआ!! दादा रहे निहार, सबेरा करने वाला और हुआ।। एक हथौड़े वाला घर में और हुआ! जनता रही पुकार सलामत लाने वाला और हुआ सुन ले री सरकार कयामत ढाने वाला और हुआ!! एक हथौड़े वाला घर में और हुआ!

मैं एक शहर में डूबने से डरता हूं..

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Courtesy_Google मैंने उत्तराखंड नहीं देखा मैंने टिहरी भी नहीं देखा इसलिए मैं तबाही की कल्पना करता हूं,  तो कंपकंपी सी होने लगती है लेकिन मैं दिल्ली से डरता हूं दिन रात बराबर  जैसे बच्चे अंधेरी रातों में भूतों से  वो शहर जो एक नदी को लील रहा है दिन रात बराबर मैं डर के मारे दरवाजे बंद कर लेता हूं.. गांव, कस्बों की ओर चला जाता हूं मैं एक शहर में डूबने से डरता हूं.. 24.06.2013

मैं चमारों की गली तक ले चलूंगा आपको

(कोई छह साल पहले लखनऊ के अख़बार अमृत प्रभात के साप्ताहिक संस्करण में अदम गोंडवी उर्फ़ रामनाथ सिंह की एक बहुत लम्बी कविता छपी थी : ``मैं चमारों की गली में ले चलूंगा आपको´´। उस कविता की पहली पंक्ति भी यही थी। एक सच्ची घटना पर आधारित यह कविता जमींदारी उत्पीड़न और आतंक की एक भीषण तस्वीर बनाती थी और उसमें बलात्कार की शिकार हरिजन युवती को `नई मोनालिसा´ कहा गया था। एक रचनात्मक गुस्से और आवेग से भरी इस कविता को पढ़ते हुए लगता था जैसे कोई कहानी या उपन्यास पढ़ रहे हों। कहानी में पद्य या कविता अकसर मिलती है - और अकसर वही कहानियां प्रभावशाली कही जाती रही हैं जिनमें कविता की सी सघनता हो - लेकिन कविता में एक सीधी-सच्ची गैरआधुनिकतावादी ढंग की कहानी शायद पहली बार इस तरह प्रकट हुई थी। यह अदम की पहली प्रकाशित कविता थी। अदम के कस्बे गोंडा में जबरदस्त खलबली हुई और जमींदार और स्थानीय हुक्मरान बौखलाकर अदम को सबक सिखाने की तजवीव करने लगे -  मंगलेश डबराल,  १९८८- "धरती की सतह पर " की भूमिका से ) आइए महसूस करिए जिन्दगी के ताप को मैं चमारों की गली तक ले चलूंगा आपको जिस गली में भुखमरी की यातन

मैं कविता से प्रेम करता हूं.

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courtesy_google मैं कविता से प्रेम करता हूं. ...और तुम्हारे पास कविता की भावनाएं हैं भाव, कविता के लिए आत्मा की तरह है.. इसी धागे के दो सिरे हैं हम तुम और तुम तो जानती हो.. भाव के बिना कविता अधूरी है.. मेरे जीवन में तुम्हारा होना ही कविता का होना है.. ताकि मैं प्रेम करता रहूं ..............कविता से 05.05.2013