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उसे निहारना

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मुझे जब भी मौका मिलता है मैं उसे निहारता रहता हूं. दरअसल इसके पीछे एक सघन और रहस्यमयी आकर्षण है. जबकि वो मुझे नापसंद करती है. यह आकर्षण उसकी आहट मिलते ही मुझ पर हावी हो जाता है..जब वो मेरे सामने होती है..मैं निहारता रहता हूं उसे. अपने सुकून के लिए.. क्योंकि जब आप एक चुम्बकीय शक्ति से बंधे होते है..सुकून आपके नियंत्रण में नहीं होता. 04.07.2013

मैं अपना आरम्भ कितना पीछे छोड़ आया हूं।

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Courtesy_Google मृत्यु तब तक कोई समस्या नहीं है.. जब तक आपने जीना शुरू नहीं किया है। लेकिन मैं तो अभी ठिठका हूं..ठीक, चलने से पहले..। मैं अकेले जीना नहीं चाहता और मरना भी..इसलिए इंतजार कर रहा हूं उसके आने का..ताकि हम अंगुलियों के पेंच लड़ा सकें.. यूं भी ठिठकना आप की स्मृतियों को ताजा कर देता है। दो पतंगें हवा में पेंचे लड़ा रहीं थी, खिलखिला रही थी और एक दूसरे की नोंकझोंक में मगन थीं..नीचे ढेर सारे लोग चिल्लाते हुए अपने हाथ हवा में लहरा रहे थे.. कौन जानता था उनकी ये खुशी स्वार्थवश थी। हवा का तेज झोंका एक पतंग को खींचता हुई दूसरी से अलग कर गया। जिसे छतों पर खड़े लोगों ने लूट लिया.. स्मृतियां आपके पांवों में उलझ जाती है..लेकिन नए बीजों को पनपने के लिए भूमि की गर्माहट बहुत जरुरी होती है। जीने की नई शुरूआत से पहले सोचता हूं..मैं अपना आरम्भ कितना पीछे छोड़ आया हूं। (कहीं कुछ टूटा हुआ सा है..शीशे सा।) 24.06.2013

ब्लॉग डायरीः अंगुलियों को कलम से आलिंगनबद्ध होना पसंद नहीं

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courtesy_google इस शहर में आए हुए मुझे दो महीने से ज्यादा हो गए. लेकिन मेरा मन ना तो ऑफिस के काम में लगता है, ना उस कमरे में जहां मैं रहता हूं. हालांकि एक बल्ब की रोशनी मेरी तन्हाइयों को रोशन करने की फिराक में लगी रहती है. मैं डूबता रहता हूं..अपने भूत और भविष्य के क्रिया कलापों को लेकर, तो कभी किसी अमूर्त काया से कविता के मार्फत अपने प्रेम का इजहार करता हूं. 2. एक खूंटी के जरिए दीवार के सहारे लटकी बल्ब की रोशनी मेरे सोने तक जगी रहती है. सिर्फ इसीलिए कि मैं एक बार उसकी तरफ नजरें उठा कर देख लूं. लेकिन अकेलेपन से आजिज होकर जब मैं खुद से छुटकारा पाने कोशिश करता हूं. मेरी आंखें, मस्तिष्क को नियंत्रित करने लगती है. ऐसे में उस रोशनी से आंखें मिला पाना संभव नहीं हो पाता और वो रोशनी अगली रात के इंतजार में अपनी आंखें बंद कर लेती है.  इससे पहले कलम, मस्तिष्क के साथ कदम ताल करती थीं और वाक्यों में एक लय बनी रहती थीं. लेकिन जब से अगुंलियां की-बोर्ड पर थिरकने लगी है. मस्तिष्क का नियंत्रण भी की-बोर्ड के हाथ में चला गया है. और जब ये अंगुलियां कलम थामती है तो मस्तिष्क, कलम से पीछा छुड़ान