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Rahul Gandhi: Being Congress President in times of Modi

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Rahul Gandhi files his party presidency papers on 4th December 2017. Picture: Twitter गुजरात चुनाव में राहुल गांधी के लगभग हर भाषण सुन रहा हूँ. राहुल अपने समकक्ष नेताओं में सबसे समझदार, पढ़े लिखे और सामने वाले को सुनने में यकीन रखने वाले हैं. अपने परिवार में राहुल पांचवें सदस्य हैं. जो कांग्रेस की बागडोर सम्भालने जा रहे हैं. लेकिन, राहुल के सामने कोई आसान चुनौती नहीं है. ये आजादी के पहले भी थी और गांधी की हत्या के बाद विकराल रूप में उभरकर सामने आई. हालांकि तब समाज को नेतृत्व देने वाले नेता आज के नेताओं के मुकाबले कहीं ज्यादा बेहतर थे. उनकी सोच एक बेहतर समाज रचने की थी, जहां शांति और भाईचारा हो. लक्ष्य एक वैज्ञानिक समाज बनाने की थी. हर कांग्रेस अध्यक्ष के सामने अलग-अलग चुनौती रही है, लेकिन उन सबकी चुनौतियों में जो कॉमन है वो थी साम्प्रदायिकता.  गांधी की हत्या के बाद साम्प्रदायिकता ने अपना फन फैला लिया था, लेकिन उसके मुकाबले के लिए हमारे पास नेहरू की अगुआई में ऐसे बहुत सारे नेता थे जो समाज को दिशा दे सकते थे, साम्प्रदायिकता का फन कुचल सकते थे. आज की तरह समाज बंटा हुआ नहीं था. प्

A Letter to Congress Vice President Rahul Gandhi

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Congress Vice President Rahul Gandhi आदरणीय राहुल जी , नमस्कार! मैं 29 साल का एक युवा हूं जो महात्मा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरू के मूल्यों और सिद्धांतों में विश्वास करता है। इसी नाते यह पत्र आपको लिख रहा हूं। देश में जिस तरह राजनीतिक द्वेष का वातावरण बना हुआ है , लोग आपकी तरफ मुंहबांए देख रहे हैं। भारत की समरसता और विविधता को बचाने की जिम्मेदारी आप पर है। मैं इस बात को समझता हूं कि राजनीतिक समीकरण हमारे साथ नहीं है , लेकिन इसका मतलब ये भी नहीं है कि हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें। हमें आगे बढ़कर चुनौतियों का मुकाबला करना है। आर्थिक और सामाजिक मोर्चे पर आम जनता के हितों पर लगातार चोट हो रही है , लेकिन राष्ट्रभक्ति और हिंदुत्व की चाशनी में लपेटकर इसे देशभक्ति साबित किया जा रहा है। हमें संविधान के मूल्यों को हाथ में लेकर रणक्षेत्र में निकलना होगा। अपने विश्वास और राजनीतिक मूल्यों के साथ हमें लोगों के बीच घुल जाना होगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी को सामाजिक न्याय की राजनीति से बहुत डर लगता है। आपको यही छोर पकड़ना है और निकल पड़ना है स्कूलों , कॉलेजों , पार्कों

यूपी विधानसभा चुनाव का सारांशः 10 प्वाइंट

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Courtesy_Social Media उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की जीत ने विपक्षी पार्टियों को कई मोर्चों पर सबक सिखाया है। चुनाव प्रबंधन, कम्युनिकेशन, जातीय गणित और राजनीतिक समीकरणों को बीजेपी ने बड़ी चालाकी से सेट किया और अभूतपूर्व सफलता हासिल की है। इस चुनाव परिणाम के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि यह 'न्यू इंडिया' का जनादेश है। 'न्यू इंडिया' के इस जनादेश ने यूपी की बदलती राजनीति की कई गिरहें खोल दी हैं। या यूं कहें कि बदलती राजनीति की तस्वीर बिल्कुल साफ कर दी है। इस जनादेश के बाद यूपी की राजनीति के नए कोण उभर कर सामने आ रहे हैं। 1. कांशीराम के लिए बहुजनों ने एक नारा दिया था। 'कांशीराम तेरी नेक कमाई, तूने सोती कौम जगाई...' यह यथार्थ है कि कांशीराम और बसपा ने यूपी में दलितों और पिछड़ों की राजनीति कर उन्हें सत्ता में भागीदार बनाया लेकिन 2017 के जनादेश ने यह साफ कर दिया है कि कांशीराम ने जिस कौम को जगाया था उसे अब भूख लगी है। 1984 में बसपा के गठन और 93 में बीएसपी की पहली साझा सरकार के बाद आप अनुमान लगा सकते हैं कि कितने वर्ष गुजर गए। यूपी और

स्वच्छ भारत अभियान: दो अक्टूबर के बाद कौन झाड़ू लगाएगा?

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Image_Google हम भारतीयों को कचरा छुपाने की बड़ी गंदी आदत है. घर , गांव और शहर के किसी कोने में कचरा छुपा देते हैं. या फिर अगर कचरा द्रव अवस्था में हुआ तो गंगा , यमुना , गोमती या फिर किसी अमानीशाह नाले में बहा देते हैं. जैसे कचरे के निपटान की कोई और व्यवस्था ना हो. मजे की बात तो ये है कि देश में ही कचरे के निपटान की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है , जैसे सड़क और खुले में हगने वाले हजारों लोगों के पास शौचालय की व्यवस्था नहीं है. द्रव अवस्था वाला कचरा नदी और नाले के पानी में मिल जाता है और वो फिर हमें कचरा नहीं दिखता , लोग उसे गंदा पानी कहने लगते हैं. जैसे दिल्ली के आने के बाद मैंने यमुना को देखकर कहा था , आह , यमुना जी कितनी गंदी हो गई है !   और तभी मेरे चचा जान ने तपाक से जवाब दिया , अबे , ये यमुना जी नहीं , नाला है.. नाला. मैं अवाक रह गया ? इस देश में सफाई को लेकर सब चिंतित है. लेकिन सवाल ये है कि झाड़ू लगाने के बाद कचरे का निपटान कैसे होगा. क्या कचरा निपटान के नाम पर दिल्ली के लोग यूपी की सीमा पर कचरे का पहाड़ बनाएंगे या यमुना में बहाते रहेंगे. जरा राजधानी के बाहर निकलिए.

कुर्बानी मांग रहा है सीसैट आंदोलन

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courtesy_aajtak.in हुक्मरानों ने जब इस देश में भाषा विज्ञान की जगह तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देना शुरू किया , तो इसका एक बड़ा प्रभाव हमारी शिक्षा व्यवस्था पर भी आया. छात्रों को बताया गया कि गणित , अंग्रेजी और विज्ञान पढ़ो. उसी से रोजगार मिलेगा और रोटी भी. फिर क्या था हर कोई अपने बच्चे को इंजीनियर और डॉक्टर बनाने लगा. उदारीकरण ने एमबीए और सीए जैसे कोर्सों को जन्म दिया. इनकी तैयारी के लिए तमाम संस्थान खुलने लगे. लोग कोर्स करने के बाद सात समंदर ब्रैंड इंडिया के एंबेसडर होने लगे और लाखों का सैलरी पैकेज उनकी जब में था. ये नए युवा भारत की पहचान थी. राजधानी की जिन सड़कों पर छात्र लाठियां खा रहे हैं. वे उन प्रदेशों से आते हैं जहां अब भी प्रशासनिक नौकरियों को तरजीह दी जाती है. लोग भाषा विज्ञान की पढ़ाई भी पूरे उत्साह से करते हैं. तमाम परेशानियों के बावजूद संस्कृत पढ़ते हैं और जब एक प्रदेश के राज्यपाल दीक्षांत समारोह में उनकी पढ़ाई और संस्कृत पर सवाल उठाते हैं , तो छात्र राज्यपाल पर चप्पल उछालने में देरी नहीं करते. वे जानते हैं कि चंद बरसों बाद संस्कृत और ऊर्दू की सांसें थम जाएगी. लेकि

बनारस डायरी: काशी के बदले माहौल में फंस गई है मोदी की जीत

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Courtesy_Harendra Yadav   काशी के पांच दृश्य  दृश्य-1  गोदौलिया चौराहे के पास बीजेपी समर्थकों का हुजूम. भगवा रंग की छतरी, पर्चे, पैम्फलेट. झंडे और तमाम चुनाव समाग्री, चौराहे से लोग किसी तरह निकल रहे. भीड़ बढती जा रही है. मोदी के समर्थन में लगातार नारे उछाले जा रहे हैं. एक तरह सड़क के दाहिने कोने में आम आदमी पार्टी का एक समर्थक अपने चार पांच आदमियों के साथ हाथों में झाड़ू लिए मोर्चा संभाले हुए. लेकिन उसकी आवाज बीजेपी के नारों से दब जा रही है. हालांकि वह लगातार हवा में झाड़ू लहरा रहा है. इस बीच अमित शाह कार में चढ़कर आते है और गोदौलिया भगवा रंग में डूब जाता है. दृश्य-2 दशाश्वमेध घाट, अगर बीजेपी के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को मंजूरी मिल गई होती, तो वे आज गंगा आरती में शरीक हो रहे होते, और ये आरती रोज की तरह ना होकर हाईप्रोफाइल होती. सुरक्षा के तमाम उपाय होते और साधारण लोग चौक के पास ना जा पाते.. बहरहाल नावों पर सवार होकर लोग आरती में शामिल हुए और रोज की तरह गंगा के प्रति अपनी श्रद्धा दर्शाई. Assi Ghat_Benaras_courtesy_Harendra Yadav दृश्य-3 कुमार स्वामी घाट, सीढ़ियों से

Kejriwal giving sleepless nights to Narendra Modi

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"हां, हम चोर हैं और हमने कांग्रेस की नींद चुराई है" ये शब्द बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के है, जो अपनी रैलियों में कांग्रेस पार्टी की स्थिति बयान करने के लिए इस्तेमाल करते हैं। हिंदी पट्टी के चार राज्यों में बीजेपी की सफलता और कांग्रेस की करारी हार का समीकरण मोदी के पक्ष में दिखता है। लेकिन इन्हीं चार राज्यों में से एक दिल्ली के परिणाम बीजेपी पर भारी पड़े है। आम आदमी पार्टी का उभार और केजरीवाल के जादुई नेतृत्व कौशल ने नरेन्द्र मोदी की नींद उड़ा दी है। जब यह तय हो चुका है कि "आप" दिल्ली में सरकार बनाएंगी, मंगलवार को बीजेपी चुनाव प्रचार समिति की बैठक होने जा रही है जिसमें लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान को नई गति देने और रणनीति बनाने पर चर्चा होगी। इसके साथ ही बीजेपी के मुख्यमंत्रियों की भी बैठक होने जा रही है.. "आप" के चमत्कारी उभार ने बीजेपी को मजबूर कर दिया है कि लोकसभा चुनाव के लिए वह अपने पेंच कस लें, अन्यथा आप को हल्के में ना लेना दिल्ली की तरह भारी पड़ जाएगा। बीजेपी को यहां दुरूस्त करने होगी अपनी रणनीति प