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तुम्हें खो देने का डर

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Image_Nandlal सोचता हूं कभी समुद्र में गहरे उतर जाऊं शांत शीतल जल में नीम अंधेरे दुनिया से छुप के तुम्हें प्यार करूँ तुम्हें निहारता रहूं तुम्हारी जुल्फों से खेलूं तुम्हारा आलिंगन करूँ और तुम्हारे माथे को चूम लूं फिर सहसा डर जाता हूँ गर समुद्र की तलहटी में उतरकर तैरना भूल गया तो क्या होगा? कहीं अपनी नाकामी से मैं तुम्हें खो ना दूं कहीं मेरी लाचारी तुम्हारी बाधा न बन जाये इस प्यार में गर लहरों की जाल में सांसें उलझ गयीं डरता हूँ समुद्र की गहराइयों में उतरने से डरता हूँ तुमसे प्यार का इजहार करने से

तुम्हें सपने में देखना

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Image_Nandlal मैं डरता हूँ तुम्हारे साथ चलते हुए डरता हूँ कि कहीं छू न जायेबदन मेरा और चौंक उठो तुम कहीं बुरा न लगे तुम्हें मेरी बातें तुमसे गुफ़्तगू में सिहरता हूं कुछ कहना चाहता हूं तुमसे लेकिन, तुम्हें खोने से डरती हैं साँसें यूं खामोशियाँ कुछ कहती हैं लेकिन बोलने से डरता हूँ कहने को बहुत है मगर कहीं बुरा न मान जाओ तुम तुम्हें खोने से डरता हूँ तुम सपने में आती हो हर रोज बेनागा, मैं आंखें खोलने से डरता हूँ हर रात कहानी लिखता हूँ लेकिन बताने से डरता हूँ चूम लेता हूँ पलकें तुम्हारी लेकिन होंठो की गुस्ताख़ी होंठो ने न मानी लिखता हूँ हर रात की कहानी

मेरी रूह

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Image_Nandlal मेरी रूह तुम्हारा आना जैसे उठती है बांसुरी की सुरीली तान जैसे बजता है मन्दिर का घंटा जैसे होती है मस्जिद में अज़ान मेरी रूह तुम्हारा साथ जैसे माथे पे लगा हो नजर का टीका जैसे हुस्ना की आंखों में हो काज़ल जैसे सावन की घटा में बरसे हो बादल तुम्हारी बातें जैसे बजने लगे हो सातों सुर जैसे फलक पे उतरा हो इंद्रधनुष जैसे कानों में घुला हो अमृत का रस तुम्हारा स्पर्श जैसे छूती हो तुम अपने झुमके जैसे लगाती हो आंखों में सुरमे जैसे लगा हो घाव पे मलहम मेरी रूह तुम्हारा होना, मेरी साँसों का चलना है धमनियों का दौड़ना है मौसम का खुशगंवार होना है जिंदा रहने की वजह होना है

तुम्हारे साये में तन्हा हूँ

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Image_Nandlal अपनी बातों में तन्हा हूँ अपनी सांसों में तन्हा हूँ अपनी कविताओं में तन्हा हूँ तुम्हारे साये में तन्हा हूँ चमकती धूप में तन्हा हूँ मचलती सांझ में तन्हा हूँ उड़ते बादल में तन्हा हूँ तुम्हारे साये में तन्हा हूँ घनी छांव में तन्हा हूँ अपनी हर्फ़ों में तन्हा हूँ चलती हवाओं में तन्हा हूँ तुम्हारे साये में तन्हा हूँ बुने गए हर ख्वाब में तन्हा हूँ भरी टोकरी के फूल में तन्हा हूँ गुलाबी गुलदस्तों में तन्हा हूं तुम्हारे साये में तन्हा हूँ महफ़िल की कहकशां में तन्हा हूं ढलकते जाम के बुलबुलों में तन्हा हूँ सावन की गिरती रिमझिम में तन्हा हूँ तुम्हारे साये में तन्हा हूँ तुम्हारे साये में तन्हा हूँ P. S. - उसके नाम, जिसकी तलाश मेरी रूह को है।

रख दो मेरे होठों पर अपने होंठ

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Image_Nandlal मुझे तलब लगी है तुम्हारे होठों की नमी चखने की पर इस पुरवाई में तुम अपने कमरे में कैद हो रात के तीसरे पहर मेरी आँखों में नींद के बजाय तुम्हारा चेहरा है मैं अपना दर्द कहूं तो कैसे मैंने तुम्हें इत्तला नहीं की है लेकिन तुम्हें आभास तो है एकतरफा बह रही पुरवाई से सूख रहा गला तुम्हें कैसे फोन करूँ तुम्हारी नींद में खलल कैसे डालूं तुम्हारी सांसें गिनना चाहूं अभी तुम्हारे हाथों की नमी में सोना चाहूं तुम्हें कैसे जगाऊँ नींद के एक्सटेंशन में मैं तन्हा जगा हूँ तुम्हारे फोन नम्बर का उच्चारण करते गले में पड़ रहा है सूखा जैसे मार्च में ही तप रहा जेठ का सूरज पड़पड़ा रहे होंठ, उधड़ रही चमड़ी सोचता हूँ दौड़ पड़ूं तुम्हारी सड़क की ओर और तुम भी चली आओ मॉर्निंग वॉक करते और रख दो मेरे होठों पर अपने होंठ ताकि तर जाये मेरा गला ठंडी पड़ जाए मेरी रूह शुकराने में मैं चूम लूं तुम्हारी पलकें और भर लूं तुम्हें अँकवार में जैसे एक दूसरे से चिपट जाती हैं बन्द आंख की पलकें

तुम्हारे उरोजों में मुंह दबाए सुबक रहा हूँ मैं

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हर सुबह  तुमसे आलिंगन होने का ज्वार मुझे विक्षिप्त कर देता है वासना के ज्वार में कांपता शरीर जंघाएँ दौड़ती हैं तुम पर वार करने को काठ हुआ शरीर चिपक जाता है बिस्तर से दीवार पर बैठी तुम हजार अंगड़ाईयाँ लेती हो फिर दीवार से उतरकर मेरे सामने खड़ी हो जाती हो निर्झर शाख की तरह ज्वार में विक्षिप्त मैं डूब जाता हूँ पसीने के दरिया में तुम्हारे उरोजों में मुंह दबाए सुबक रहा हूँ मैं तुम्हें पाने के बुखार में 

कविताः आस्तिक

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Image Courtesy_@nandlalflute मैं इश्क में हूं और अपने हमनवां की इबादत करता हूं तुम मुझे नास्तिक कहो, ये तुम्हारा प्रमेय है. 

मां के नाम

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Courtesy_Google Images एक जवान लड़का सबसे ज्यादा अपनी मां को महसूसता है क्योंकि.. मां अब नहीं है उसकी दुनिया में अकेले है वो पूरी भागदौड़ में जब वह भागना सीख रहा था उसकी मां चली गई वह बिछड़ गया अपनी मां से दुनिया के झमेले में वह महसूसता है ढूंढ़ता है मां को अकेलेपन में दुनियादारी के बोझ से फारिग होकर मां के आंचल में छुप जाने को जी भरकर रो लेने को कि वो इतना तन्हा क्यूं है।।

An Open Letter To Whom it May Concern

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Courtesy_Social Media डियर R अब जबकि तुमसे प्रेम करते हुए मैं अकेला पड़ गया हूं। तुम्हें पाने की मेरी बेचैनी और बढ़ गई है। लेकिन मैं नहीं चाहता कि मेरा प्रेम तुम्हारे आड़े आए, किसी भी तरह। फिर भी मैं तुम्हें हमेशा याद करता हूं। रात-दिन, सुबह-दोपहर-शाम और भोर में भी। तुम जानती हो कि भोर मुझे कितना पसंद है, जब मैं तुम्हारी बाहों में समा जाता था और तुम मुझे अपने भीतर डूब जाने देती। दिन के हर पहर तुम्हें सोचता हूं कि तुम्हें फोन कर लूं। शायद, थोड़ी राहत मिल जाए, लेकिन फिर सोचता हूं कि अगर फोन कर लिया तो फिर खुद को संभाल पाना और तुमसे फासला रख पाना मुश्किल हो जाएगा। तुम्हें याद करने की आवृत्ति और बढ़ जाएगी और फोन करने का सिलसिला भी। हालांकि मुझे नहीं पता कि तुम्हें मेरा ख्याल आता भी है या नहीं।  दर्द और कचोट भी है.. तुम्हें बांहों में ना भर पाने की और मुझे इससे पार पाना ही होगा। तुम्हें खुलकर प्यार कर पाना अब शायद ही संभव हो, लेकिन प्यार तो बना ही रहेगा। चाहे हमारे दरम्यान कितना भी फासला बढ़ जाए। ये सिर्फ तुम जानती हो कि मैं तुम्हें घनघोर प्यार करता हूं और मैं जानता हूं कि तुम

मेरा काम चूल्हे में लकड़ियां झोंकना है

मेरा काम चूल्हे में लकड़ियां झोंकना है जब तक दूध खौलता नहीं मेरा काम चूल्हे में लगी आग को धधकाए रखना है धधकती आग की खातिर सूखी लकड़ियां ही जलेगी और आग धधकेगी दूध खौलेगा अपने समय पर क्योंकि दूध.. खून नहीं है कि क्षण भर में खौल उठे खून का खौलना इंसान को जानवर बना देता है मेरे चूल्हे पर चढ़ी हांडी में मिठास पक रही है दूध खौलेगा और उसकी मिठास इंसान को जानवर नहीं बनने देगी। 14.04.2016

प्रेम में बाधक

मैं ऑफिस जा रहा हूँ। मेट्रो की सीढ़ियां चढ़ रहा हूँ। पैरों के दाब से जगता हूँ तो एहसास होता है कि मैं तुमसे हजार किलोमीटर दूर हूँ। लेकिन ये जानने से पहले मैं तुम्हारे साये में था तुम्हारे पहलू में था तुमसे बातें कर रहा था। तुम सामने बैठी थीं हमारी नजरें उलझी थी मैं तुम्हारी लटें सुलझा रहा था फिर मेट्रो की सीढियां आ गई रोजाना चढ़ना और उतरना भावनाओं की डोर से बंधें दो हृदय में कम्पन पैदा करतीं है आलिंगन बद्ध दो जोड़ी बाहें अलग हो जाती हैं तुम्हें बताऊँ ये सीढ़ियों से मेरा रोज का चढ़ना और उतरना हमारे प्रेम में बाधक है। 27.11.2015

अपनी कवितायेँ मिटा दूँ

तुम्हारी ख़ुशी के लिए   मैं अपनी कवितायें मिटा दूँ ताकि कोई जान न सके हमारे दरम्यान क्या था ये तुम्हारा आदेश है लेकिन तुम ये जान लो   कि मैं तुम्हारा आदेश मानने को   बाध्य नहीं हूँ ये कवितायेँ मेरी भावनाएं है क्या मैं उन्हें मिटा दूँ ये कवितायें उस समय पल्लवित हुई जब मैं तन्हा था ये कवितायें आधार है   मेरे सुकून का इन्हें न लिखूं तो बेचैनी मेरी जान ले ले तुम कहती हो, मैं सरसों के फूल पर लिखूं तुम भूल जाती हो कि तुम्हारे बिना सरसों के फूल उजाड़ बियाबां की तरह है तुम हो तो फूल.. फूल हैं मौसम ... हैं हृदय में गति है मस्तिष्क में विचार है विचारों में प्रेम है प्रेम है तो मैं हूँ मैं हूँ तो कवितायें हैं इन्हें मिटाने के लिए तुम मुझे मिटा दो मेरा आग्रह है तुमसे 01.02.2016

मैं तुम्हें भूलना चाहता हूँ

हाँ , मैं तुम्हें भूलना चाहता हूँ तुम्हारी स्मृतियों को झटक देना चाहता हूँ बिना बताये तुम्हें अब तुम्हें मेरी परवाह कहां लेकिन मैं तुम्हें ही याद कर जिन्दा हूँ तुम्हें याद न करूँ तो साँस लेना मुश्किल हो जाये और इन सब बातों का तुम्हे इल्म कहां मैं नहीं जानता मुझे चाहने और अपने प्रेम पाश में बांधने के पीछे   तुम्हारा कौन सा स्वार्थ था लेकिन उस प्रेम की ज्योत का क्या जो तूमने मुझे सिखाया क्या तुमने सिर्फ मेरे सीने में प्रेम जगाया था और खुद को दुनियादारी के परदे में छुपा लिया जैसे तुम्हे प्रेम की जरुरत ही न हो देखो मेरे अंदर अब बहुत कुछ धधक रहा है जो लावा बनकर फूटने को है मैं तुम्हारे प्रेम के बिना मर रहा हूँ तुम्हारी बातों के सिवा संगीत कहीं नहीं है तुम्हारा पल्लू ही शीतलता दे सकता है मुझे तुम्हारे नरम स्पर्श ही जगा सकते है मुझे ये सब तुम्हे पता है और मुझे महसूस हो रहा है कि तुम्हारे अंदर मेरे लिए प्रेम बचा ही नहीं है मैं उजाड़ रेगिस्तान में शीतल जल ढूंढ़ रहा हूँ मैं प्यासा   तन्हा   व्याकुल हूँ थक चूका हूँ तुम्हारे प्रेम को पाने क

तुम रात भर जागते क्यों रहे..?

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वो पल अप्रतिम थे रात के घने कोहरे में जब तुमने मुझे कलेजे से चिपटाया था इसी पल हृदय में जमी बर्फ पिघली और मैंने तुम्हारे हाथों को चूम लिया एक बार दो बार पूरे तीन बार ..….. तुमने मुझे दाब लिया कलेजे में वो सबसे ज्यादा गर्माहट भरे पल थे मेरे जीवन का लेकिन... मेरी प्यास अधूरी थी आँखों से नींद गायब थी हृदय प्यासा था तुम्हारे सीने से लगने को ..... मैं तरसता रह गया प्यासा खुली आँखों से अँधेरे में चिराग ढूंढ़ता रहा करवट बदलता रहा ......... हजारों घड़ियाँ बीतने के बाद तुम्हारा चेहरा मेरे सामने था और मैं अविकल तुम्हारे माथे को चूम बैठा फिर दोनों पलकों पर अपने होंठ रख दिए एक प्यासे के लिए प्रिय के प्रति प्यार जताने का ये अनमोल जरिया है किसी ने कहा है माथे को चूमना आत्मा को चूमने जैसा है तुम्हारे माथे को चूमकर मैंने अपने रिश्ते को आत्मा से जोड़ दिया है और उसी क्षण जब तुमने कहा... पागल... मैं भावविभोर हो बैठा आधी रात को न अच्छा लगा , बुरा न लगा फिर भी गर्माहट से भरा सुख मिला और मैं पूरी रात जागता

मेरे सीने में लगी आग तुम्हारे सीने में भी धधके

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Fire in Heart_Google दिन भर तुम्हारे बारे में सोचता हूँ।   आधी आधी रात तक जागता हूँ।   जब तुम थी तब भी और जब नहीं हो तब भी जब थी , तो तुम्हारे सीने से लगने के लिए जागता था और जब नहीं हो तब   तुम्हारे बदन की गंध को महसूस कर जागता हूँ कभी रजाई में ढूँढ़ता हूँ कभी उस तकिये में , जिस पर तुम सिर रखके सोई थी तुम्हे बताऊं   मेरे सीने में एक आग लगी है। जब आखिरी बार तुमने कलेजे से लगाया था। तभी से चाहता हूँ आठों पहर तुम्हें सीने से लगाए रहूँ।   प्यार करूँ और तुम्हारी पलकों को चूम लूँ। तुम्हारे हाथों के नर्म स्पर्श में पिघल जाऊँ और अपनी द्रव्यता से तुम्हें भिगो दूँ तुम्हारी अतल गहराइयों में उतर जाऊं हमेशा के लिए   द्रव्य बनकर ताकि मेरे सीने में लगी आग तुम्हारे सीने में भी धधके आहिस्ता आहिस्ता ज़माने की बुरी नजरों से बचके

प्रेम धधकता बहुत है.. दिलों में

उपलों की तरह उदासियां  थाप दी गई है कल्पनाओं के कैनवास पर  और तब से ओढ़ ली है मैंने खामोशी  तुम्हारे ना होने से उपजे दर्द को ढंकने के लिए  लेकिन एक दिन मैं उगल दूंगा भाव शून्य होने से पहले  सारा दर्द.. सारी खामोशी  उस मटके में  जिसे तुमने रखा था गुलाब रोपकर  मकान के मुंडेर पर  ये कहते हुए कि ये हमारे प्रेम का प्रतीक है. अब मुरझाने लगा है  वो.. लाल गुलाब  उसकी सांसों की आवृति डूबने लगी है लेकिन प्रेम डूबेगा नहीं मैं रोप दूंगा उसे  भूमि की कोख में  गर्माहट से भरी एक सुबह  मेरा प्रेम आंखें खोलेगा और तब दुनिया जानेगी दो अनजान प्रेमियों के बारे में  जो अछूत थे, दुनिया के लिए  जिनका प्रेम असहय था  पाक-साफ, धोई-पोछी संस्कृति के लिए  लोग पूछेंगे.. उनका गुनाह क्या था?  प्रेम समा नहीं पाता  दुनियानवी खांचों में  मैंने देखा है.. उपलों की आग की तरह  संस्कृति के अहरा पर  प्रेम धधकता बहुत है..  दिलों में.. 21-02-2014

ब्याज

जब मैं लोन लेने गया, पूंजीवाद के साहूकारों ने इंकार कर दिया सेठ का बच्चा पढ़ने विलायत गया, ब्याज जन हितैषी सरकार ने चुकाया 17-01-2014

AAZADI MUBARAK

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सिर फूटत हौ, गला कटत हौ, लहू बहत हौ, गान्ही जी देस बंटत हौ, जइसे हरदी धान बंटत हौ, गान्ही जी बेर बिसवतै ररूवा चिरई रोज ररत हौ, गान्ही जी तोहरे घर क' रामै मालिक सबै कहत हौ, गान्ही जी हिंसा राहजनी हौ बापू, हौ गुंडई, डकैती, हउवै देसी खाली बम बनूक हौ, कपड़ा घड़ी बिलैती, हउवै छुआछूत हौ, ऊंच नीच हौ, जात-पांत पंचइती हउवै भाय भतीया, भूल भुलइया, भाषण भीड़ भंड़इती हउवै का बतलाई कहै सुनै मे सरम लगत हौ, गान्ही जी केहुक नांही चित्त ठेकाने बरम लगत हौ, गान्ही जी अइसन तारू चटकल अबकी गरम लगत हौ, गान्ही जी गाभिन हो कि ठांठ मरकहीं भरम लगत हौ, गान्ही जी जे अललै बेइमान इहां ऊ डकरै किरिया खाला लंबा टीका, मधुरी बानी, पंच बनावल जाला चाम सोहारी, काम सरौता, पेटैपेट घोटाला एक्को करम न छूटल लेकिन, चउचक कंठी माला नोना लगत भीत हौ सगरों गिरत परत हौ गान्ही जी हाड़ परल हौ अंगनै अंगना, मार टरत हौ गान्ही जी झगरा क' जर अनखुन खोजै जहां लहत हौ गान्ही जी खसम मार के धूम धाम से गया करत हौ गान्ही जी उहै अमीरी उहै गरीबी उहै जमाना अब्बौ हौ कब्बौ गयल न जाई जड़ से रोग पुराना अब्बौ हौ दूसर के कब्जा में आपन पानी दाना अब्

"एक हथौड़े वाला घर में और हुआ "

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केदारनाथ अग्रवाल की कविता एक हथौड़े वाला घर में और हुआ! हाथी-सा बलवान, जहाजी हाथों वाला और हुआ! सूरज-सा इंसान तरेरी आँखों वाला और हुआ! एक हथौड़े वाला घर में और हुआ! माता रही विचार, अंधेरा हरने वाला और हुआ!! दादा रहे निहार, सबेरा करने वाला और हुआ।। एक हथौड़े वाला घर में और हुआ! जनता रही पुकार सलामत लाने वाला और हुआ सुन ले री सरकार कयामत ढाने वाला और हुआ!! एक हथौड़े वाला घर में और हुआ!

रॉक डाल्टन की कविता_बेहतर प्यार के लिए

रॉक डाल्टन (1935-1975) अल साल्वाडोर के क्रांतिकारी कवि रॉक डाल्टन ने अपनी छोटी सी जिंदगी कला और क्रांति के सिद्धांत को आत्मसात करने और उसे ज़मीन पर उतारने मे बिताई. उनका पूरा जीवन जलावतनी, गिरफ्तारी, यातना, छापामार लड़ाई और इन सब के साथ-साथ लेखन में बीता.  उनकी त्रासद मौत अल साल्वाडोर के ही एक प्रतिद्वंद्वी छापामार समूह के हाथों हुई.  उनकी पंक्ति- “कविता, रोटी की तरह सबके लिए है” लातिन अमरीका मे काफ़ी लोकप्रिय है. यह कविता मन्थली रिव्यू, दिसंबर 1985 में प्रकाशित हुई थी.) हर कोई मानता है कि लिंग एक श्रेणी विभाजन है प्रेमियों की दुनिया में- इसी से फूटती हैं शाखाएँ कोमलता और क्रूरता की. हर कोई मानता है कि लिंग एक आर्थिक श्रेणी विभाजन है- उदाहरण के लिए आप वेश्यावृत्ति को ही लें, या फैशन को, या अख़बार के परिशिष्ट को जो पुरुष के लिए अलग है, औरत के लिए अलग. मुसीबत तो तब शुरू होती है जब कोई औरत कहती है कि लिंग एक राजानीती श्रेणी विभाजन है. क्योंकि ज्यों ही कोई औरत कहती है की लिंग एक राजनीतिक श्रेणी विभाजन है तो वह जैसी है, वैसी औरत होने पर लगा सकती है विराम और अपने आप की खातिर एक